23.7.09

हारा वही जो लड़ा नहीं है ......

हारा वही ,

जो लड़ा नहीं है ......

और ,

हम लड़ते रहे हर वो लडाई ,

जिनसे है इंसानियत शर्मसार ,

हम ख़म ठोककर खड़े रहे तब भी ,

जब शासन प्रशासन के आगे ,

मास्ट हेड भी झुका लेते थे अपना सर

हमने शीश झुकाया - उन लोंगो

और कामों के लिए ,

जिनसे संवरता है हम सब का कल ,

हम वीरानों में थे , हम थे अट्टहासों के बीच भी ,

हम चीत्कारों को सुन रहे थे

और महसूस कर रहे थे सिसकियों को भी ,

हर दुःख , हर सुख में

हर शर्म में और हर गौरव में

हम थे आपके साथ ,

हर बार हमने बताया सच ,

क्योकि हम हमेशा से थे सच के साथी ,

और हैं साहस के साझीदार

क्योकि हम चाहते हैं

सबके लिए स्वाभिमान

6.3.09

''पत्रकारिता के पापी'' - एक महिला पत्रकार के संस्मरण

एक सुंदर लड़की। एंकर बनने का सपना। थोड़े से संपर्क और ढेर सारा उत्साह। निकल पड़ी। एक प्रदेश की राजधानी पहुंची। वहां उसकी एंकर सहेली वेट कर रही थी। गले मिली। आगे बढ़ी.......... और अगले एक हफ्ते में ही वो सुंदर लड़की पत्रकारिता की काली कोठरी में कैद हो गई। वहशी संपादकों, रिपोर्टरों, कैमरामैनों के जाल में फंस गई। इन लोगों को चाहिए दारू और देह। इसी को पाने के लिए पत्रकारिता की दुकान सजा रखी थी।
उसकी सहेली पहले से उस दलदल में धंसी हुई थी। निकलने की चाहत में और गहरे धंसे जा रही थी। जब वह एक से दो हुईं तो दुखों का साझा हुआ। एक दिन दोनों ने मुक्ति पाने का इरादा किया। गालियां देते, कोसते वहां से निकल भागीं। पहुंच गईं दूसरे प्रदेश की राजधानी। उम्मीद में कि अब सब बेहतर होगा। जो कुछ वीभत्स, भयानक, घृणित था, वो बीता दिन था। वो दिन गए, वो सब भुगत लिया। भूल जाने की कोशिश करने लगीं।
याद करने लगीं अपने सपने। सपनों को सचमुच में तब्दील होते देखने के लिए निकल पड़ीं मैदान में। जो सोच के इस फील्ड में आई थीं, उसे जीने के लिए खुद को तैयार करने लगीं, उसे पाने के लिए प्रयास करने लगीं। पर इन सहेलियों की देह ने यहां भी पीछा नहीं छोड़ा। जिस मीडिया कंपनी में भर्ती हुईं वहां भी था एक चक्रव्यूह। ऐसा चक्रव्यूह जिसे भेदना किसी लड़की के वश में कभी न रहा। ये लड़कियां भी इसमें फंस गईं। पत्रकारिता में सफल बनने के नुस्खे सिखाते हुए यहां के भी संपादक, रिपोर्टर, कैमरामैन इन लड़कियों के लिए काल बन गए। ये तो पहले वालों से भी ज्यादा घृणित, भयानक और वहशी निकले...................।
''पत्रकारिता के पापी''... यह शीर्षक खुद उस महिला जर्नलिस्ट ने दिया है जिसने उजले चेहरों के कालेपन को भुगता है। सौजन्य - भड़ास फॉर मीडिया डाट काम

भड़ास फॉर मीडिया डाट काम ने ऐसे घृणित कृत्य , करने वाले वहशी मीडिया कुकर्मियों को बेनकाब करने का बीडा उठाया है छत्तीसगढ़ पत्रकार संघ यसवंत सिंह जी के इस जज्बे को सलाम करता है । छत्तीसगढ़ पत्रकार संघ हर लडाई में आपके साथ है ।

23.2.09

एक प्रेस रिपोर्टर के भगीरथ प्रयास से मासूम को मिली नई जिन्दगी

देश की एक अरब की आबादी में अब तक केवल 57 ऐसे लोगों की पहचान हो पाई जिनका ब्लड ग्रुप-बाम्बे ब्लड ग्रुप है। ऐसे में एक मासूम बालक के दिल में सुराख का आपरेशन कराने के लिए 3 यूनिट बाम्बे ब्लड की जरूरत पड़ी। गरीब मां बाप अरविन्द के जीने की आशा छोड़ चुके थे। रिपोर्टर असलम ने मीडिया की पहुंच का इस्तेमाल किया और अरविन्द का सफल आपरेशन हो सका। ऐसी हर खबर जो सनसनी फैलाए, पाठकों की संवेदनाओं को झकझोर दे, किसी भी अखबारनवीस के लिए बड़े काम की होती है। प्रेस रिपोर्टर और प्रेस छायाकार हर दिन किसी अनूठी खबर की तलाश सुबह से शुरू करते देर रात तक तैयार कर लेते हैं। छप जाने के बाद अगली सुबह फिर किसी नई खबर की खोज शुरू हो जाती है। दैनिक अखबारों में काम करने वाले रिपोर्टरों के पास अपने कोटे की खबरें तैयार कर एक तय समय पर देने का दबाव होता है और वह अपने नाते-रिश्तेदारों के सुख-दुख के लिए भी बहुत कम समय निकाल पाता है। ऊपर से कस्बों में काम करने वाले पत्रकारों की पगार इतनी कम होती है कि अपने परिवार के लिए रोजमर्रा का इंतजाम कर लेने में ही सुख की अनुभूति कर लेता है। उनके भीतर आमतौर पर समाज का पहरेदार होने का भाव अहंकार भी पैदा कर देता है, जो किसी की भलाई करने से उन्हें रोकता है। ऐसी हालत में अगर कोई रिपोर्टर किसी दलित, गरीब गंभीर ह्रदय रोग से पीड़ित बच्चे के निराश हो चुके माता-पिता के दुख में खुद को शामिल कर लेता है और देशभर में मदद की गुहार लगाकर बालक का जीवन बचाने में सफल हो जाता है तो सुखद अनुभूति होती है। इस मार्मिक घटना का अंत बहुत सुखद है और जिसके चलते एक 90रूपए की रोजी कमाने वाला बढ़ई अपने गरीब बच्चे के पीछे दो लाख रूपए का इंतजाम कर दुर्लभ आपरेशन करा सका है। सवाल केवल रुपए का नहीं, यहां पर उससे भी बड़ा पहाड़ था बाम्बे ब्लड ग्रुप का प्रबंध करना। इस ग्रुप का खून न केवल हिन्दुस्तान में बल्कि पूरी दुनिया में बहुत कम लोगों में पाया जाता है। हिन्दुस्तान की एक अरब से अधिक की आबादी में अब तक केवल 57 लोगों की पहचान हो पाई है, जिनका ब्लड बाम्बे ग्रुप का है। बिलासपुर छत्तीसगढ़ के स्लम एरिया में रहने वाले बढ़ई अश्वनी कुमार बघेल के 6 साल के बेटे के बारे में यहां के एक दैनिक अखबार में काम करने वाले रिपोर्टर छायाकार असलम को तब मालूम हुआ जब वह किसी खबर के लिए यहां के अपोलो हास्पीटल में पहुंचा। वहां किसी से बातचीत के दौरान ही पता चला कि एक बालक यहां कल तक भर्ती था, जिसके ह्रदय में सुराख था। डाक्टरों ने उसे इस लिए डिस्चार्ज कर दिया क्योंकि उस बालक का ब्लड ग्रुप बाम्बे है, जो अत्यन्त सीमित है। इस बालक के लिए राज्य सरकार ने संजीवनी राहत कोष से राशि मंजूर की थी, जिसे अपोलो प्रबंधन ने दो दिन का खर्च काटकर वापस भेज दिया, अपनी रिपोर्ट में बिना इस बात का जिक्र किए कि अरविन्द का इलाज नहीं हो पाया है। असलम को लगा कि यह खबर बनती है। उसने बताए पते पर जाकर अरविन्द और उसके माता-पिता की तलाश शुरू की। पहले पन्ने की खबर बनी। छपने के बाद बहुत से पाठकों को मालूम हुआ कि कोई ऐसा ब्लड ग्रुप है, जिसकी उपलब्धता अत्यन्त दुर्लभ है। छपने के बाद असलम इस खबर से अलग नहीं हो पाया। मासूम अरविन्द अपनी बीमारी की गंभीरता से अनजान था, और मोहक मुस्कान लिए खेलता था पर थोड़ी ही देर में हांफने लगता था। गरीब, दलित और मामूली पढ़े लिखे मां-बाप अपने बेटे के बचने की उम्मीद पूरी तरह छोड़ चुके थे। उनकी लाचारी-बेबसी असलम को परेशान कर रही थी। इस बीच शहर के सारे अखबारों में मासूम अरविन्द की खबर आई। अपोलो हास्पीटल के डाक्टर भी इसके बाद फिर सक्रिय हुए। असलम के सम्पर्क करने पर उन्होंने कहा कि 4 यूनिट बाम्बे ब्लड यदि उन्हें मिल जाता है तो वे अरविन्द का आपरेशन कर देंगे। असलम ने अरविन्द के लिए रक्त जुटाने के काम को एक मिशन की तरह लिया। उसने खबर छापने के बाद इंटरनेट का सहारा लिया। दर्जनों वेबसाइट्स में उसने तलाश की क्या बाम्बे ब्लड ग्रुप का कोई दानदाता मिलेगा? असलम को इससे खास मदद नहीं मिली। अपोलो हास्पीटल प्रबंधन ने कुछ गंभीर होकर बाम्बे ग्रुप के ब्लड की तलाश की, लेकिन उन्हें सफलता नहीं मिली। यहां के प्रबंधकों ने बताया कि उन्होंने देशभर के नामी ब्लड बैंकों में पता लगा लिया है, कहीं पर भी इसकी उपलब्धता नहीं है। असलम ने न्यूयार्क में दुनिया के सबसे बड़े माने जाने वाले ब्लड बैंक, न्यूयार्क ब्लड बैंक को भी मेल किया और अरविन्द के लिए बाम्बे ब्लड की मांग की। वहां से जवाब आया कि बेहतर होगा, आप हिन्दुस्तान में ही तलाश करें। असलम इस पर भी निराश नहीं हुआ। तलाश के दौरान कोरबा के एक युवक का पता चला, जिसका रक्त बाम्बे ग्रुप का था। भगीरथ यादव नाम का यह युवक जन्म से ही दोनों पैरों से अशक्त है। अरविन्द की पीड़ा सुनकर वह तत्काल खून देने के लिए तैयार हो गया। इस तरह एक शुरूआत हो गई। लेकिन अभी भी 3 यूनिट और खून की जरूरत थी। मीडिया से जुड़े असलम ने अपनी ताकत इस तरफ भी लगाई। याहू ग्रुप के अलावा देश भर में रक्तदाताओं के लिए काम करने वालों का वेबसाइट्स में पता लगाना शुरू किया। अनेक लोगों से मेल पर जानकारी शेयर की गई और मेसेन्जर पर चर्चा हुई। इसके चलते जल्द ही अरविन्द का मामला तमाम राष्ट्रीय पत्र-पत्रिकाओं और इलेक्ट्रानिक मीडिया के माध्यम से देश-विदेश में पहुंच गया। जी न्यूज, सहारा न्यूज, ईटीवी, बीबीसी हिन्दी डाटकाम, इंडिया टुडे आदि में अरविन्द की हालत पर समाचार बने। स्टार न्यूज ने इस पर लाइव विशेष रिपोर्ट प्रसारित किया। आईबीएन7 ने इस पर 30 मिनट तक अरविन्द की दास्तां दिखाई। जिसका शीर्षक दिया- अंकल मुझे बचा लो। देश भर के लोगों के इन दफ्तरों में फोन आए और लोगों ने असलम तथा अरविन्द के पिता अश्वनी से सम्पर्क शुरू कर दिया।अपोलो ने हाथ खींचाभगीरथ यादव ने सबसे पहले एक यूनिट खून दिया। इसके बाद राऊरकेला के एक भले आदमी ने आकर अपोलो में अपना ब्लड दिया और अरविन्द से मिले बगैर ही वापस चला गया। मुम्बई के डोम्बीवेली से एक अपरिचित एमआर ने अपने खर्च पर वहां के किसी ब्लड बैंक से एक यूनिट ब्लड खरीदा और उसे सुरक्षित अपोलो छोड़ गया। इस तरह से इस विशाल देश में चिन्हित बाम्बे ब्लड ग्रुप के 57 लोगों में से ऐसे 3 लोगों की तलाश हो गई जिन्होंने अपना रक्त अरविन्द के लिए दिया । अपोलो के चिकित्सक डा। संजय जैन 3 यूनिट पर भी अरविन्द का आपरेशन करने के लिए तैयार हो गए। लेकिन आपरेशन की तय तिथि के ठीक एक दिन पहले वे अपना हौसला खो बैठे और यहां की सुविधाओं में कमी का हवाला देते हुए आपरेशन स्थगित कर चैन्नई अपोलो रिफर कर दिया। अरविन्द का पिता निराश हुआ लेकिन उम्मीद तो छोड़ी नहीं जा सकती थी। वह अरविन्द को लेकर चैन्नई गया। वहां के डाक्टरों ने और भी हताश कर दिया। उन्होंने कह दिया कि 3 यूनिट ब्लड से तो कुछ नहीं हो पाएगा, कम से कम 6 यूनिट की जरूरत पडे़गी। यह भी कहा गया कि जो खून अपोलो बिलासपुर के ब्लड बैंक में जमा है, वह अरविन्द के किसी काम नहीं आएगा और उन्हें फ्रेश खून की जरूरत पड़ेगी।इसके बाद लगातार प्रयास जारी रहे। अनेक लोगों के फोन आते रहे और अपनी ओर से मदद करने की कोशिश करते रहे।रायगढ़ के सतीश सिंह ठाकुर और टाटानगर, जमशेदपुर के अमिताभ कुमार सिंह ने ब्लड देने की इच्छा जताई और कहा कि वे जहां उनकी जरूरत हो पहुंचने के लिए तैयार हैं। एक टेलीकाम इंडस्ट्री के चीफ मैनेजर बी एस श्रीधर, जो बैंगलोर से ही हैं, अपना रक्त देने के लिए तैयार हो गए। इस बीच अपोलो बिलासपुर में जमा कराया गया दुर्लभ रक्त खराब हो चुका था। इसी बीच असलम को उसके एक मित्र ने बैंगलोर के एक अस्पताल नारायण ह्रदयालय बैंगलोर का पता दिया और कहा कि वहां पर कम खर्च में अच्छी सुविधाओं के साथ अरविन्द का आपरेशन हो सकता है। उस हास्पीटल ने अच्छा सहयोग दिया। यहां असलम ने अस्पताल के चेयरमैन डा. देवी शेट्ठी से सम्पर्क किया। डाक्टर ने कहा कि वे कम से कम खर्च पर अरविन्द का इलाज करेंगे और बाकी ब्लड की भी व्यवस्था करेंगे। नारायण ह्रदयालय बैंगलोर, वही हास्पीटल है, जहां पाकिस्तानी बच्ची नूर के ह्रदय का आपरेशन हुआ था, जिसकी देशभर में चर्चा थी। इसके बाद आपरेशन की तय तारीख के 15 दिन पहले 7 अक्टूबर को अरविन्द और उसके परिजन बैंगलोर पहुंच गए। बाद में असलम और दोनों रक्तदाता अमिताभ और सतीश भी वहां पहुंचे। 24 अक्टूबर को डा. सी रेड्डी और डा. संदीप के साथ 4 डाक्टरों की टीम ने अरविन्द का 4 घंटे में सफल ओपन हार्ट सर्जरी की। अब अरविन्द अपने घर लौट चुका है और हाल ही में उसने अपना आठवां जन्मदिन मनाया। अरविन्द के साथ सबको हमदर्दी रही। जाने कितने लोगों ने अपनी अपनी भूमिका निभाई। बलौदा कालेज में पढ़ाने वाली शिवकुमारी कुर्रे, नोविनो बैटरी के अधिकारी ए के पौराणिक, राकेश बाटवे, सुनील मित्तल, प्रमोद अग्रवाल, निखिल उपाध्याय, अफजल हुसैन, मीना लुसानी- कुवैत आदि ने अपनी अपनी तरफ से मदद दी। अरविन्द के मामले में छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह और राजस्व मंत्री बृजमोहन अग्रवाल ने विशेष रूचि लेकर संजीवनी कोष से राशि स्वीकृत की, इसके बावजूद की राज्य के अनुमोदित अस्पतालों में नारायण ह्रदयालय का नाम नहीं था। एसईसीएल बिलासपुर ने भी जरूरत के अनुसार आर्थिक सहायता दी। अरविन्द के मामले में असलम ने दुर्लभ बाम्बे ब्लड समूह की खोज के लिए अब बाम्बे ब्लड हेल्पलाइन रक्तदाताओं के सहयोग से बनाया है और इसमें ज्यादा से ज्यादा लोगों को जोड़ने की कोशिश कर रहे हैं। असलम की संस्था से वह हर कोई जुड़ सकता है। संस्था का उद्देश्य है कि लोगों के रक्त समूह की पहचान के लिए देश भर में अभियान चले और इसमें से खासतौर पर बाम्बे ब्लड ग्रुप वालों की पहचान की जाए। आप अब्दुल असलम से सम्पर्क करना चाहते हैं तो उनका ई-मेल आईडी है bombayblood.bsp@rediffmail.com और aslamimage@rediffmail.com.
ऐसे कर्ताब्यानिस्थ व सहृदय पत्रकार को अपने बीच पाकर छत्तीसगढ़ पत्रकार संघ गौरान्वित है हम सभी पत्रकार साथी बालक अरविन्द के स्वास्थ्य की कामना के साथ मो असलम जी को साधुवाद देते है ।

20.1.09

पत्रकारिता और पत्रकार

पत्रकारिता की ऊपर से दिखाई पड़ने वाली चमक-दमक के बीच अक्सर ये बात गुम सी हो जाती है कि कई लोगों के लिए पत्रकारिता एक जोखिम भरा पेशा भी होती है। ये वो लोग होते हैं जो किसी खबर के पीछे सरहदों के आरपार, और खबरों के बेहद करीब जाकर खड़े हो जाते हैं। मामला जंग का हो, आतंक का हो, किसी हादसे का हो, भूकंप का या सूनामी का हो, अक्सर अपनी सहूलियतों से बेपरवाह, अपने खतरों को पहचानते हुए भी कोई पत्रकार किसी मोर्चे पर जा पहुंचता है तो वो एक निहत्था सिपाही होता है जिसकी जान बड़ी आसानी से ली जा सकती है।
हुकूमतें सबसे पहले उस पत्रकार को निशाना बनाती है जो इस सिलसिले की पहली कड़ी होता है- वो रिपोर्टर जो कहीं जाकर, किन्हीं अंधेरों में दाखिल होकर, सूचनाओं की सेंधमारी करता है और अगले दिन के अखबार के लिए एक जरूरी मसाला जुटाता है। लेकिन उसकी ताकत यही होती है कि वो मरते-मरते भी अपना पेशा नहीं भूलता। उसके हाथ से उसकी कलम, उसका कैमरा नहीं छूटता- सच को पकड़ने की उसकी जिद नहीं खत्म होती, भले इसके लिए जो भी कीमत चुकानी पड़े।

14.1.09

मिडिया की आजादी खतरे में ,

बिलासपुर छत्तीसगढ़ पत्रकार संघ के महासचिव राज गोस्वामी (दैनिक जागरण) की अगुवाई में 15 जनवरी को काला दिवस मनाने का निर्णय लिया गया है। संघ के महासचिव राज गोस्वामी ने बताया कि केन्द्र सरकार द्वारा मीडिया को गुलाम बनाने की मंशा के खिलाफ बिलासपुर के पत्रकारो ने भी 15 जनवरी को काला दिवस मनाते हुए विरोध दर्ज कराने का फैसला किया है। 15 जनवरी को प्रधानमंत्री के नाम ज्ञापन स्थानीय प्रशासन को सौंपा जाएगा। इस मौके पर हुई बैठक में उमेश कुमर सोनी (राष्टीय न्यूज सर्विस), अमित मिश्रा दैनिक इस्पात टाइम्स, शशांक दुबे चैनल वन और अन्य लोग मौजूद थे।

ध्यान रखिए, यह लड़ाई सिर्फ इलेक्ट्रानिक मीडिया की ही नहीं है। 'इमरजेंसी सिचुवेशन' और 'नेशनल क्राइसिस' जैसे धीर-गंभीर शब्दों की आड़ में आज टीवी पर जनांदोलनों को दिखाने से रोके जाने की तैयारी है तो कल इसे प्रिंट मीडिया और वेब माध्यमों पर भी लागू किया जा सकता है। सरकार ने टीवी को पहले इसलिए निशाना बनाया है क्योंकि कुछ गल्तियों के चलते टीवी वालों के प्रति जनता में भी गुस्सा है। इसी गुस्से का लाभ सरकार उठा रही है। अब जबकि टीवी के लोग खुद एक संस्था का गठन कर अपने लिए गाइडलाइन तैयार करा चुके हैं और उसे फालो करने का वादा कर चुके हैं, ऐसे में सरकार का काला कानून लाना उसकी नीयत को दर्शाता है।
नेताओं की चले तो देश में मीडिया कभी आजाद तरीके से काम न कर सके क्योंकि ये मीडिया और न्यायपालिका ही हैं जो अपनी आजादी का उपयोग करते हुए बड़े-बड़े शूरमाओं की असल पोल-पट्टी सामने लाने में सक्षम होते रहे हैं और जनता के गुस्से को सत्ताधारियों तक पहुंचाने का माध्यम बनते रहे हैं। सरकार में बैठे लोगों के मन में टीवी वालों के प्रति गुस्सा इसलिए भी है क्योंकि मुंबई आतंकी हमलों के बहाने न्यूज चैनलों ने देश की लचर सुरक्षा व्यवस्था पर तीखे अंदाज में सवाल उठाए। सरकार और उसकी एजेंसियों के नकारेपन को पूरे देश के सामने उजागर किया। इसी 'गल्ती' की सजा मीडिया को देने पर आमादा है सरकार।
कैबिनेट नोट बटने का मतलब होता है मंत्रिमंडल की अगली किसी भी बैठक में इस पर मुहर लगाकर कानून बना देना। मीडिया के लिए कानून संसद में बहस के जरिए बनाए जाने की बजाय चोर दरवाजे से कानून लाने की तैयारी है। इसी का नतीजा है कि देश की विपक्षी पार्टियों के नेताओं तक को इस बात की खबर न हो सकी है कि सरकार मीडिया के साथ क्या बर्ताव करने जा रही है। अब जबिक मीडिया के लोग सभी पोलिटिकल पार्टियों के नेताओं को सरकार की अलोकतांत्रिक मंशा के बारे में बता रहे हैं तो हर नेता का यही कहना होता है कि उन्हें तो इस बारे में खबर तक नहीं है।
दोस्तों, मीडिया में होने के नाते हम-आप पर जो दायित्व है, उसका निर्वाह 15 जनवरी के दिन हम-आप जरूर करेंगे, यह उम्मीद चौथे खंभे की आजादी में विश्वास रखने वाले हर शख्स को है।
न्यूज चैनलों के संपादकों ने काले कानून के प्रति सभी राजनीतिक पार्टियों को जागरूक करने और इस कानून को न लागू होने देने के मकसद से कई बड़े नेताओं से मुलाकात की। इस मुलाकात अभियान के तहत अब तक भाजपा अध्यक्ष राजनाथ सिंह, सीपीएम के जनरल सेक्रेटरी प्रकाश करात, सोनिया गांधी के राजनीतिक सलाहकार अहमद पटेल, सपा नेता अमर सिंह, केंद्रीय मंत्री राम विलास पासवान से मिल चुके हैं। आज शाम को भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी और कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से मुलाकात तय है। इस बीच, देश भर के मीडियाकर्मियों ने 15 जनवरी को काला दिवस मनाने की तैयारी कर ली है। दिल्ली में जंतर-मंतर पर सैकड़ों की संख्या में मीडियाकर्मी दिन में 12 बजे उपस्थित होंगे और काला कानून बनाने के लिए केंद्रीय मंत्रियों में बांटे गए कैबिनेट नोट की प्रतियां जलाएंगे।

यही कहा जा सकता है कि यह मामला किसी पत्रकार संगठन या मीडिया के किसी खास हिस्से का नहीं है। यह हर मीडियाकर्मी और हर आजादी पसंद नागरिक का मामला है। आप संपादक हों, ट्रेनी हों या पत्रकारिता के छात्र हों, 15 जनवरी के दिन निजी तौर पर या सामूहिक तौर पर, जो भी विकल्प उपलब्ध हो, काला दिवस मनाना चाहिए। काला दिवस मनाने का यह मतलब कतई नहीं है कि हम काम पर न जाएं। पढ़ाई-लिखाई के साथ लड़ाई लड़ने के लिए नीचे लिखे तरीकों में से किसी एक को आजमा सकते हैं-
15 जनवरी को काली पट्टी माथे पर या बांह पर बांधकर ही घर से निकलें और पूरे दिन इसे बांधे रहें।
जरूरी समझें तो काले कानून के विरोध में सरकारी आयोजनों के कवरेज का सामूहिक रूप से बहिष्कार करें।
प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति को संबोधित एक ज्ञापन बनाएं और इसकी एक-एक कापी जिलाधिकारी को सौंपें।
विरोध दर्ज कराने के लोकतांत्रिक तरीकों धरना, उपवास, मौनव्रत, जुलूस, नारेबाजी को आजमा सकते हैं।
केंद्र सरकार के प्रतीकात्मक पुतले को जिला मुख्यालय पर नारेबाजी के साथ जला सकते हैं।
काले कानून की प्रतीकात्मक प्रतियों को जिला मुख्यालय पर जलाया जा सकता है।

9.1.09

Yograj Bhatiya Chhattisgarh State President




Raj Goswami Chhattisgarh State Genral Secratory

परिचय


Raj Goswami

State Gen.Secratory

Chhattisgarh Patrakar Sangh

Bilaspur, Mobile : +91-9827181113


उत्तर प्रदेश बनारस जिला के एक गांव महादेवा में जन्म। पिता सरकारी नौकरी में अतः मध्य प्रदेश के शहडोल में रहकर ग्रेजुएशन तक पढ़ाई। पोस्ट ग्रेजुएशन की डिग्री वर्तमान छत्तीसगढ़ के जिला बिलासपुर से। बिलासपुर के गुरुघासीदास विश्वविद्यालय से टूरिस्म एंड ट्रावेलिंग मैनेजमेंट की डिग्री । बेसिक कंप्यूटर कोर्स की डिग्री । अभिवाजित मध्य प्रदेश व वर्तमान छत्तीसगढ़ के पत्रकार संगठन में अग्रणी भूमिका निभाई । बिलासपुर में एमपी हिन्दी मेल से करियर की शुरुआत। राष्ट्रीय हिन्दी मेल भोपाल , राष्ट्रीय हिन्दी मेल रायपुर एडिशन , दैनिक उत्कल मेल , दैनिक आज , कलयुग का भारत , टुडे एक्सप्रेस में काम किया । वर्तमान में दैनिक जागरण के साथ में व दैनिक उत्कल मेल , हिंदुस्तान समाचार सेवा न्यूज़ एजेन्सी का बिलासपुर इंचार्ज। साथ ही समाज सेवी संस्था जनहित युवा मंच के संस्थापक अध्यक्छ पद पर रहे। छत्तीसगढ़ पत्रकार संघ के ब्लाग raaj और मीडिया के संगठन छत्तीसगढ़ पत्रकार संघ के संस्थापक